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“I’m V K Shekhar, IPS (Retd.) at Government of India. I live in Ghaziabad, India. But basically, I belong to Farukkhabad. I am proud of being a human being. My favorite lines are “Even sky should not be the limit to your achievements.”

Only human beings can progress in life.

Practically only the human being can decide and set direction and pace of his action and work and influence the action and work of other living beings and action and work happening in the non-living things in his surroundings.

He can utilize potential of himself as well as that of the surrounding universe comprising living or non living beings including of course the other human beings, to produce some desired results.

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Ghazal and Shayari That I've Written

माँ शारदे, वरदान दो, हम शिशु तुम्हारे,
अज्ञानता में ज्ञान के दे दो सहारे

मद, मोह, माया, काम, में जीवन फँसा है,
आँखें कहाँ वो देखतीं जो सच हुआ है,
कोई हमारा शत्रु बाहर का न सक्षम,
हैं आंतरिक अपनी कमी से आज अक्षम,
पाएं विजय यदि क्रोध पर जग जीत लेंगे,
सारे जगत को प्रेम का संदेश देंगे,

जग जाएं सोए भाग्य कुछ अब तो हमारे,
माँ शारदे, वरदान दो, हम शिशु तुम्हारे

जीवन अहिंसा, सत्य के पथ पर चले अब
अस्तेय का पालन करें औ सुख मिलें सब
सब कामनाएं हों हमारी लोकहित में
जीवन चले रख अपरिग्रह का ध्यान चित में
हम स्वच्छता का भी करें पालन सही अब
संतोष प्रतिफल में रखें, कर्मठ रहें सब

अब ज़िन्दगी में मिल सकें सच्चे सहारे
माँ शारदे, वरदान दो, हम शिशु तुम्हारे

जीवन तपस से रात-दिन समृद्ध हो अब
नित स्वाध्यायों से निखरते जाएं जन सब
हर काम ईश्वर को समर्पित कर करें हम
यह भाव मन में जागृत हो, दूर हो तम
नित आसनों को भी नियम से हम लगाएं
आयाम सारे प्राण के, जीवन सजाएं

सब जानते हैं हम तुम्हारे हैं दुलारे
माँ शारदे, वरदान दो, हम शिशु तुम्हारे

आचार प्रत्याहार का समुचित करें हम
अब लालसा भी बाह्य चीजों की करें कम
हम धारणा भी ध्यान की रक्खें मनन में
संभव समाधी हो, फलें फूलें जगत में
उद्देश्य जीवन का सफल हो आज सुखकर
आनन्द पाएं सब जगत में साथ मिलकर

माँ की कृपा हो तो सुखद हों सब नज़ारे
माँ शारदे, वरदान दो, हम शिशु तुम्हारे

इश्क में जब हम ख़ुदी को भूलते हैं
बन्दगी में, ज़िन्दगी को भूलते हैं

क्या भयानक बाढ़ ये लाती रही है
शह्र में जब हम नदी को भूलते हैं

ये सिफ़त अपनी रही है दोस्तो कुछ
काम में हम, हर किसी को भूलते हैं

सिफ़त=विशेषता

काम से रखते जो दूरी ज़िन्दगी में
ज़िन्दगी भर वो ख़ुशी को भूलते हैं

आसमानी रहमतों की चाहतों में
हम धरा की रोशनी को भूलते हैं

देखकर इक घोंसला सुन्दर, सुरक्षित
आधुनिक कारीगरी को भूलते हैं

नासमझ कितने हैं वो सोचो तो ‘शेखर’
लम्हे के आगे सदी को भूलते हैं

लम्हा=पल, क्षण

– वीरेन्द्र कुमार शेखर

सोचने ही से मुरादें तो नहीं मिल जाती
ऐसा होता तो हर एक दिल कि तमन्ना खिलती
कोशिशें लाख सही बात नहीं बनती है
ऐसा होता तो हर एक राही को मंज़िल मिलती
मैंने सोचा था के इंसान की क़िस्मत अक्सर
टूट जाती है बिखरती है सँभल जाती है
अप्सरा चाँद की बदली से निकल जाती है
पर मेरे वक़्त की गर्दिश का तो कुछ अंत नहीं
ख़ुश्क धरती भी तो मझधार बनी जाती है
क्या मुक़द्दर से शिकायत, क्या ज़माने से गिला
ख़ुद मेरी साँस ही तलवार बनी जाती है
हाए,
फिर भी सोचता हूँ,
रात की स्याही में तारों के दीये जलते हैं
ख़ून जब रोता है दिल गीत तभी ढलते हैं
जिनको जीना है वो मरने से नहीं डरते हैं
इसलिये,
मेरा प्याला है जो ख़ाली तो ये ख़ाली ही सही
मुझको होँठों से लगाने दो यूँ ही पीने दो
ज़िंदगी मेरी हर एक मोड़ पे नाकाम सही
(फिर भी उम्मीदों को पल भर के लिये जीने दो) (Sung by Rafi )

उँगली दिखा के एक, बताता जो ग़ल्तियाँ,
उसकी तरफ भी तीन हुआ करतीं उँगलियाँ।

गोली विटामिनों की उन्हें दे रहे हैं वो,
जिनको न मिल सकीं हैं कभी ढंग से रोटियाँ।

सीधे बुढ़ाते जा रहे, अब होंगे कब जवां,
बच्चे गए जो भूल ये, बचपन की मस्तियाँ।

पीना पड़ा है ज़ह्र जो जीवन में आजतक,
मेरी जुबान में न हों कैसे ये तल्ख़ियाँ।

दुनिया में सच की राह पे जो भी चला कभी,
उस पे तो लोग कसते ही रहते हैं फब्तियाँ।

– वीरेन्द्र कुमार शेखर

उँगली दिखा के एक, बताता जो ग़ल्तियाँ,
उसकी तरफ भी तीन हुआ करतीं उँगलियाँ।

गोली विटामिनों की उन्हें दे रहे हैं वो,
जिनको न मिल सकीं हैं कभी ढंग से रोटियाँ।

सीधे बुढ़ाते जा रहे, अब होंगे कब जवां,
बच्चे गए जो भूल ये, बचपन की मस्तियाँ।

पीना पड़ा है ज़ह्र जो जीवन में आजतक,
मेरी जुबान में न हों कैसे ये तल्ख़ियाँ।

दुनिया में सच की राह पे जो भी चला कभी,
उस पे तो लोग कसते ही रहते हैं फब्तियाँ।

– वीरेन्द्र कुमार शेखर

My life my goals
- Mission -

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- Vision -

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