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ग़ज़ल

कहाँ कुछ सोच में बदला है यारो,
ज़माना जैसा था, वैसा है यारो।

% ## सियासत हो गई जबसे तिज़ारत,
बशर इक वोट सा लगता है यारो।

% ## वो हो तेज़ी कि मंदी मारकिट में,
ग़रीबों के लिए झटका है यारो।

# बहुत है वज़्न भारी सादगी का,
बिना सँवरे कहाँ उठता है यारो।

% ## धनी का धन, श्रमिक का ग़म बढ़ाता,
अजब ये बंद का धंधा है यारो।

## अभी भी ‘घीसू’ औ ‘माधव’ मिलेंगे,
‘कफ़न’ पर भारी जो नश्शा है यारो।

% ### जो लगती शांति, सन्नाटा न हो वो,
मुझे इस बात का खटका है यारो।

दबी चींटी भी कस के काटती है,
सँभल जाओ अभी मौक़ा है यारो।

% ### ज़रूरत से अधिक झुकता जो “शेखर”,
वो तुमको दे रहा धोखा है यारो।

# करो जो काम, ढूँढो चैन उसमें,
तरक़्क़ी का यही रस्ता है यारो।

हुए सब काम-धंधे बंद लेकिन,
वो नेता कह रहे शोशा है यारो।

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