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सोचने ही से मुरादें तो नहीं मिल जाती

सोचने ही से मुरादें तो नहीं मिल जाती
ऐसा होता तो हर एक दिल कि तमन्ना खिलती
कोशिशें लाख सही बात नहीं बनती है
ऐसा होता तो हर एक राही को मंज़िल मिलती
मैंने सोचा था के इंसान की क़िस्मत अक्सर
टूट जाती है बिखरती है सँभल जाती है
अप्सरा चाँद की बदली से निकल जाती है
पर मेरे वक़्त की गर्दिश का तो कुछ अंत नहीं
ख़ुश्क धरती भी तो मझधार बनी जाती है
क्या मुक़द्दर से शिकायत, क्या ज़माने से गिला
ख़ुद मेरी साँस ही तलवार बनी जाती है
हाए,
फिर भी सोचता हूँ,
रात की स्याही में तारों के दीये जलते हैं
ख़ून जब रोता है दिल गीत तभी ढलते हैं
जिनको जीना है वो मरने से नहीं डरते हैं
इसलिये,
मेरा प्याला है जो ख़ाली तो ये ख़ाली ही सही
मुझको होँठों से लगाने दो यूँ ही पीने दो
ज़िंदगी मेरी हर एक मोड़ पे नाकाम सही
(फिर भी उम्मीदों को पल भर के लिये जीने दो) (Sung by Rafi )

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